जाने क्या है बैंक निजीकरण और सरकार ने किया निजीकरण के लिए चार बैंकों का प्रारंभिक चयन | Privatisation of Banks in India | Banko ka Nijikaran | Bank of India Nijikaran

आपको बता दे कि अभी हाल ही में सरकार ने निजीकरण के लिए प्रारंभिक रूप से चार मध्यम आकार के बैंकों का चयन किया है। और इस बात की जानकारी भी सरकार के तीन सूत्रों ने दी है। सूत्रों के मुताबिक इनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र (बीओएम), बैंक ऑफ इंडिया (बीओआइ), इंडियन ओवरसीज बैंक (आइओबी) व सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं। अगले वित्त वर्ष के लिए पहली फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार अपने स्वामित्व वाले दो छोटे बैंकों व एक बीमा कंपनी का निजीकरण करने का लक्ष्य रख रही है। आपको बता दे कि मोटे तौर पर बड़े सरकारी बैंकों के प्रभुत्व वाले भारतीय बैंकिंग सेक्टर में निजीकरण जैसा कोई भी फैसला राजनीतिक रूप से जोखिमभरा हो सकता है। इसकी वजह यह है कि इनके कर्मचारियों की तादाद बहुत अधिक है। साथ ही आपको बता दे कि निजीकरण की सूरत में इनमें से अधिकांश के बेरोजगार हो जाने का जोखिम बना रहता है। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन ने निजीकरण की शुरुआत दूसरी श्रेणी के बैंकों से करने का फैसला किया है। सरकार ने जिन चार बैंकों का चयन किया है, उनमें से दो की बिक्री अप्रैल से शुरू हो रहे वित्त वर्ष में की जाएगी।

जाने अधिकारियों का क्या कहना है बैंकों के निजीकरण को लेकर

क्या आपको पता है अधिकारियों का क्या कहना है बैंकों के निजीकरण को लेकर। बैंकों के निजीकरण को लेकर अधिकारियों का कहना था कि बैंकों के निजीकरण को लेकर बाजार और निवेशकों का मूड भांपने के लिए निजीकरण के पहले दौर में मझोले व छोटे बैंकों का चयन कर रही है। और उसके बाद अगर आगे निवेशकों की प्रतिक्रिया ठीक रही, तो आने वाले समय में सरकार अपेक्षाकृत कुछ बड़े बैंकों के निजीकरण पर भी विचार कर सकती है। वर्तमान में बीओआइ की कर्मचारी संख्या करीब 50,000 और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की 33,000 है। आइओबी में इस वक्त करीब 26,000 कर्मचारी हैं। इस मामले में बीओएम 13,000 कर्मचारियों के साथ सबसे छोटा है, लिहाजा उसके निजीकरण में ज्यादा दिक्कत आने की संभावना नहीं है। आपको बता कि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार निजीकरण की प्रक्रिया में छह महीने तक लग सकते हैं।

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जाने भारतीय स्टेट बैंक में सरकार अपने पास कितनी हिस्सेदारी रखेगी 

आपको बता कि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार देश के सबसे बड़े कर्जदाता बैंक ‘भारतीय स्टेट बैंक’ यानि की एसबीआइ में अपनी अधिकांश हिस्सेदारी अपने पास रखेगी। देश के ग्रामीण इलाकों में कर्ज वितरण को बढ़ावा देने और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए सरकार एसबीआइ के साथ रणनीतिक बैंक की तरह व्यवहार करना जारी रखेगी। इसके साथ ही सरकार फंसे कर्ज यानि की एनपीए के बोझ तले दबे बैंकिंग सिस्टम में आमूल चूल बदलाव लाने के तहत भी निजीकरण की ओर बढ़ रही है।

क्या कोरोना संकट के बाद जब सरकार बैंकों को संपत्तियों के वर्गीकरण के लिए कहेगी तो क्या होगा

आपको बता कि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कोरोना संकट के बाद जब सरकार बैंकों को संपत्तियों के वर्गीकरण के लिए कहेगी, तो माना जा रहा है कि उनके एनपीए में एक बार फिर बड़ी बढ़ोतरी होगी। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय यानि की पीएमओ ने चार सरकारी बैंकों के निजीकरण का मन बनाया था। लेकिन बैंक कर्मचारी संगठनों की ओर से विरोध की आशंका को देखते हुए अधिकारियों ने फिलहाल दो के ही निजीकरण पर काम आगे बढ़ाने की सलाह दी है।

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जाने बैंकों के निजीकरण 2024 का कारण | Reason for Bank Privatization 2024

  1. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की खराब वित्तीय स्थिति: केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा वर्षों तक पूंजीगत निवेश और शासन व्यवस्था में सुधार किये जाने के बाद भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाया है। जबकि इनमें से कई सार्वजानिक बैंकों की तनावग्रस्त संपत्तियाँ निजी बैंकों की तुलना में काफी अधिक हैं और साथ ही उनकी लाभप्रदता, बाज़ार पूंजीकरण और लाभांश भुगतान रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है।
  2. दीर्घकालिक परियोजना का हिस्सा: केंद्र की मोदी सरकार के अनुसार दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है। यह कार्य या तो मज़बूत बैंकों को समेकित करके या फिर बैंकों का निजीकरण कर किया जाएगा।

बैंकों पर कोरोना महामारी का प्रभाव | Bank Privatisation 2024 Due to Corona

  1. कोरोना वायरस महामारी से संबंधित विनियामक छूट हटाए जाने के बाद अभी बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियों में बढ़ोतरी होने की उम्मीद की जा रही है।
  2. अगर हम RBI की हालिया वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट देखें तो सभी वाणिज्यिक बैंकों का सकल NPA अनुपात सितंबर 2020 में 7.5 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2024 तक 13.5 प्रतिशत हो सकता है। जिसका अर्थ होगा कि सरकार को फिर से सार्वजनिक क्षेत्र के कमज़ोर बैंकों में इक्विटी को इंजेक्ट करने की आवश्यकता होगी।

निजीकरण की योजना 2024 बनाने का कारण | Reason for Nijikarna 2024 | Reason for Privatization

 दरअसल इस बार केंद्र सरकार ने विनिवेश को अपना मुख्य अजेंडा बना रखा है और अपना ध्यान इस तरफ एकत्रित किये हुए है । सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर केंद्र सरकार अपने राजस्व को बढ़ाना चाहती है और उससे मिलने वाले पैसे का अधिकतम इस्तेमाल सरकारी योजनाओं पर खर्च करना चाहती है। केंद्र सरकार ने 2024-22 में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का अपना मुख्य लक्ष्य रखा है। और इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने देश की बड़ी बड़ी सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने का लक्ष्य रकह है जिसमे भारत की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) भी है, सरकार ने इसमें भी अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने की योजना बनाई हुई है।

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बैंकों के निजीकरण से खाताधारकों को कोई नुकसान नहीं होगा 

बैंकों के निजीकरण के कारण खाताधारकों को घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिन भी बैंक का निजीकरण होने वाला है, उनके ग्राहकों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। खाताधारकों को जैसे पहले सुविधा मिलती थी मिलती रहेंगी। आपकी जानकारी के लिए इन चार बैंकों में फिलहाल 2.22 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं। सूत्रों की माने तो बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कर्मचारियों की संख्या काम होने के चलते उसका निजीकरण आसानी से हो सकता है।

दो अधिनियमों में संशोधन कर सकती है सरकार | Amendment in Act 1970 and Act 1980

सार्वजनिक क्षेत्र के सरकारी बैंकों के निजीकरण का मार्ग साफ़ करने के लिए केंद्र सरकार इस साल दो अधिनियमों में संशोधन कर सकती है। आशा है कि इन दोनों संशोधनों को या तो मानसून सत्र में या उसके बाद में पेश किया जा सकता है। सूत्रों की माने तो निजीकरण के लिए बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण व हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 और बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण व हस्तांतरण) अधिनियम, 1980 में संशोधन होना बहुत आवश्यक है । इन दोनों अधिनियमों के कारण ही बैंकों का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण हो चूका है, और इन बैंकों के निजीकरण के लिये ही इन कानूनों के प्रावधानों को बदलना बहुत आवश्यक है ।

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संकटग्रस्त सरकारी बैंकों का निजीकरण बहुत आवश्यक | Requirement of Bank Nijikaran | Requirement of Bank Privatization

कुछ समय पहले ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर व अर्थशास्त्री रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने एक संयुक्त पत्र में भारतीय बैंकिंग तंत्र को मजबूत बनाने का सुझाव दिया था। उनके अनुसार कुछ संकटग्रस्त सरकारी बैंकों का निजीकरण बहुत जरूरी है, ताकि बैड लोन के बोझ को काम किया जा सके। उनके अनुसार सबसे पहले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हिस्सेदारी संरचना को बदलना होगा। सरकार जिन सरकारी बैंकों में अपनी पूंजी डालने से बचना चाहती है, उन बैंको का निजीकरण कर अपनी हिस्सेदारी 50 फीसदी से कम करना होगा । इससे बैंकों के कामकाज की प्रक्रिया में बदलाव आएगा, क्योंकि बैड लोन की ज्यादातर समस्या सरकारी बैंकों में ही होती हैं। इन बैंको में फंसे कर्ज की वसूली करना बहुत मुश्किल है। निजीकरण पर आगे बढ़ने से सरकार को हिस्सेदारी बेचकर नई पूंजी भी मिल सकती है।

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